World’s breastfeeding week
माँ का दूध अमृत समान, शिशु के स्वास्थ का वरदान – माँ का दूध अमृत समान या हिंदी फिल्मों का में dialogue तो आम सुना होगा ‘माँ का दूध पिया है तो आजा मैदान में’ यानी कहने का अंदाज़ कुछ भी माँ के दूध का पौष्टिकता से सम्बंध तो है पर कई बार बात सबको पता होती पर फिर भी अज्ञानता या लापरवाही के चलते लोग उसे जीवन में लागू नही करते और इसलिए ज़रूरत पड़ती है जागरूकता मुहिम की, जैसे breastfeeding(स्तनपान) के प्रति जागरूकता हेतु, 1992 से पूरी दुनिया में 1 से 7अगस्त तक मनाया जाता है world’s breastfeeding week.
सवाल है की दुनिया मे formula milk होने के बावजूद माँ के दूध पर इतना ज़ोर क्यों? वैसे भी pregancy के बाद मां के शरीर मे कई बदलाव आ रहे होते हैं, uterus का वापस अपनी shape में आना, वज़न में बदलाव तो क्या इन सबके बीच माँ का दूध सिर्फ इसलिए की ये दादी – नानी के पुराने जामने से चला आ रहा एक pattern है या इसका कोई scientific reason भी है।
इस विषय पर विस्तार से बात करने के लिए हमारे साथ हैं famous dietitian , nutritionist और Nurtishilp की founder Shilpi Goel जो कहती हैं कि इसमें कोई दो राय नही की माँ का दूध ही बच्चे के लिए सर्वोत्तम है और ये बात तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी मानता है कि 0-6 महीने तक के शिशु को सिर्फ़ और सिर्फ़ मां का दूध ही पिलाना चाहिए। बाहर से पानी, कोई दवा कुछ भी नही सिर्फ माँ का दूध ही शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है।
कई बार सही जानकारी नहीं होने और सहयोग की कमी की वजह से माताएं breast milk के विकल्प के तौर पर market में मिलने वाला formula milk इस्तेमाल करने लगती हैं।
कई मांओं की शिकायत होती है कि उन्हें पर्याप्त दूध नहीं होता, जिसकी वजह से मजबूरी में उन्हें फॉर्मूला मिल्क का इस्तेमाल करना पड़ता है।
कई बार ये भी होता है कि गलत जानकारी की वजह से वह मान बैठती हैं कि ब्रेस्ट मिल्क उसके शिशु के लिए पर्याप्त नहीं है।
आइये pointwise समझते हैं कि breastfeeding बच्चे और माँ दोनों के लिए कैसे बेहतर है –
बच्चे की बेहतर इम्यूनिटी के लिए ज़रूरी
0-6 महीने के बीच बच्चे को मां के दूध के अलावा किसी चीज की ज़रूरत नहीं होती है, उनके लिए यही संपूर्ण आहार है. ऐसा देखा गया है कि जिन बच्चों को स्तनपान कराया गया, उनमें आगे चलकर मोटापे की समस्या कम होती है. और फॉर्मूला मिल्क जिन बच्चों को दिया जाता है, उनका वज़न थोड़ा ज्यादा बढ़ता है ।
संक्रमण का ख़तरा कम
वहीं, स्तनपान से डायरिया जैसी बीमारियां दूर रहती हैं. छाती का संक्रमण या कान का संक्रमण फॉर्मूला मिल्क पीने वाले बच्चे की तुलना में breast milk पीने वाले बच्चों में कम देखे जाते हैं,
और अपने आप मे माँ का दूध contamination free होता ही है।
मां-बच्चे के बीच मज़बूत भावनात्मक जुड़ाव
स्तनपान कराना मां के लिए भी जरूरी है और यह बच्चे के लिए भी ज़रूरी है. यह सिर्फ़ पोषण तक ही सीमित नहीं है। जो मां अपने बच्चे को स्तनपान करा रही है, ख़ुद के करीब रख रही है, तो बच्चे की मां के साथ भावनात्मक जुड़ाव मज़बूत होता है जिससे बच्चा रोता भी कम है।
Pregnancy के दौरान में मां का वज़न बढ़ता है और जब मां अपने बच्चे को स्तनपान कराना शुरू करती हैं तो इससे उनका वज़न कम होने में भी मदद मिलती है ।
शिशु के पाचन के लिए ज़रूरी
निश्चित तौर पर मां का दूध ही पहली प्राथमिकता है, क्योंकि यह ख़ास तौर पर शिशु के लिए ही बना है इसमें
Protein, Carbohydrates कार्बोहाइड्रेट जैसे पोषक तत्व तो हैं ही लेकिन ब्रेस्ट मिल्क की ख़ासियत है कि उसमें जो protein है, वह सुपाच्य है. इससे बच्चे को दूध आसानी से पचाने में मदद मिलती है और उसे कब्ज़ की समस्या नहीं होती ।
अगर किसी वजह से माँ को enough milk खुद नही बन रहा और माँ स्तनपान नहीं करा पाती हैं वो क्या करें?
मां को सबसे पहले ख़ान-पान में पोषक पदार्थों की मात्रा बढ़ानी चाहिए। कई बार तनाव के कारण भी दूध की मात्रा पर असर पड़ता है, क्योंकि tension से oxytocin hormone से secretion पर असर पड़ता है और जिससे milk scretion कम होता जाता है।
ज़्यादा पानी ज़्यादा पिएं जिससे तनाव कम होने सहायता मिलेगी और ज़्यादा दूध बनेगा । एक बड़ी सीधी सी बात समझ लेनी चाहिए कि बच्चा मां के शरीर का ही अंश है, वो emotional, physical हर level पर उससे जुड़ा है, माँ जितनी स्वस्थ होगी नवजात शिशु भी उतना ही स्वस्थ होगा, इसिलए मां को ‘खट्टी चीजों से परहेज़ करो’ इन तरह के myths को न माने बल्कि अपने complete nutrition का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
First time mothers अक्सर ये सवाल पूछती हैं कि दिन में कितनी बार बच्चे को स्तनपान कराएं ?
अगर बच्चा स्वस्थ है,कोईmedical condition नहीं है तो सामान्य स्थिति में बच्चे को जब भूख लगे तब स्तनपान कराया जा सकता है । जन्म के बाद शुरुआती कुछ दिनों तक बच्चे को स्तनपान करना सीखने में समय लगता है, ऐसे में हो सकता है कि कम अंतराल पर दूध पिलाना पड़े लेकिन धीरे-धीरे तीन-चार घंटे का एक cycle बन जाता है. और रात को भी मां को कम से कम बच्चे को दो बार दूध पिलाना पड़ता हैl
शिल्पी गोयल ये मानती हैं कि अपने महिलाओं को मातृत्व को उत्सव की तरह महसूस करे, ये जीवन के खास पलो में से है, जितना हो तनाव कम ले, पारिवारिक जिम्मेदारियों को अपने partner और family के साथ बांट ले।जिससे वो शिशु की सेहत और अपने आपको पर्याप्त समय दे पाएं। आज की भाग दौड़ में कभी नौकरी पर लौटने की जल्दी के चलते, कभी किसी और वजह महिलाये breastfeeding से कतराती हैं इसके प्रति जागरूकता लाने के लिए की इस साल world’ breastfeeding week की theme भी यही है –
Enabling breastfeeding: making a difference for working parents.” यानी “स्तनपान को सक्षम बनाना: कामकाजी माता-पिता के लिए बदलाव लाना।”
इसी तरह सेहत से जुड़े अपने किसी भी सवाल के लिए आप कॉल कर team nutrishilp से सम्पर्क कर सकते हैं, डायल करें 7581921000 या विजिट करें [email protected].